Sunday, October 5, 2008

वो रात...

मैं मरने जा रहा हूँ। तुम यही चाहत हो न की हम मर जायें और तुम खुश रहो। तोहार ये इच्छा भी पूरी कर देंगे बिनिया। राजेश मरने से नही डरत हैं....रात दो बजे जीटी रोड पर ट्रक की साये-साये आवाजो के बीच राजेश की ये बात सुनकर सहमी उसकी पत्नी बिनिया के आँखे रो-रो कर लाल हो गई थी
बिनिया : तुम एक बार घर में तो चलो, नातों हम भी जान दे देंगे.
अरे यार ये क़या हो रहा हैं। मैंने (रवि) आँखे बड़ी करते हुए कहा।
मैं और आशीष रात कम कर वापिस लौट रहे थे।
आशीष : अरे यार ये कया बोल रहा हैं समझे में नही आ रहा।
रवि : मुझे तो लगता हैं पागल हो गया और घर से लडाई कर आया हैं।
आशीष : होगा कोई चकर
रवि : अरे नही, मुझे तो डर लग रहा हैं, चलो चलकर देखते हैं।
आशीष : ये तो जीटी रोड पर रेलिंग के पार हैं। रवि, पुलिस को फ़ोन कर यार, नही तो किसी ट्रक के नीचे आ जाएगा।
रवि : क्या मैं जेब में पुलिस वाले को रखता हूँ। मेरा तो मन कर रहा इसे एक टिका दू
आशीष : ओये कौन हो तुम और क्या नाटक हैं ये। चलो इधर जीटी रोड से नीचे आओ
क्या बताये साहब, ये हमार बिनिया दो दिन से खाना नही खा रही। अगर खाना नही खाएगी तो हम अपनी जान दे देंगे। राजेश ने रोते हुए जवाब दिया।
पागल हो क्या। चुपचाप इधर आओ। क्यो तू अपने मर्द की जान लेगी खाना क्यो नही खातीआशीष जोर से चिलाया.
बिनिया: तुम आई जयो। हम तुमका कुछ नही कहत रहे। जान मत दयो
मैं खामोश होकर देख रहा था। आख़िर रोटी नही खाने से राजेश जान देने जा रहा हैं। ये कैसा प्रेम। क्या वास्तव मैं ये सच्चा प्रेम हैं। प्रेम मैं कोई कैसे ऐसे कर सकता हैं।
इतने में राजेश का भाई महेश आया और उसे समझाया भाई जान देने से कुछ नही होगा। तुम घर चलो। सब ठीक हो जाएगा।
रवि: भाई क्या दिक्कत हैं तुम चुपचाप आते हो के नही।
महेश : राजेश तुम चलो, वरना ठीक नही होगा।
तुम जाओ आज हम इस बिनिया को सबक सिखा कर रहेंगे। ये क्यो कुछो नही खाती। घर में पेप्सी भी हैं। ये हमारी जान लेकर रहेगी।
आशीष : राजेश तुम इसे लेकर आओ हम इधर हैं। चलो अब घर जाओ और दुबारा मरने की बात मत करना। ये खाना नही खाती तो तुम्हे उससे क्या। तुम अपनी मौज में रहो।
राजेश : नही बाबूजी ऐसे थोड होता हैं। बियाह के लाया हूँ। लुगाई रोटी नही खायेगी तो मैं कैसे खा सकता हूँ।
आशीष : अरे ये तो हद हैं। देयो इसे एक रपट। अक्ल ठिकाने आ जायेगी। वो रोटी नही खाती तो तुम्हे क्या दिक्कत हैं। मरने से कोई समाधान थोड़े होगा। कुछ समझ आ रही हैं क्या।
कहा के रहने वाले हो तुम। आगरा के, राजेश ने जवाब दिया।
यार मुझे तो लगता हैं अपनी बीवी को प्यार करता हैं या फिर पिए हुए हैं।
इतने में वहा से गुजर रहे सुनील अपनी साइकिल से हमारे पास पहुँचा। उसे भी कहानी सुनाई।
मैंने कहा, तू ही इसे कुछ समझा सुनील। अपनी तो ये बात सुनता नही हैं। शायद तेरी भाषा समझ जाए।
ओये नीचे आ। चल अब चुपचाप घर जा। सुनील और महेश की बात सुनकर वो नीचे तो आ गया। पर मैं अब तक समझ नही सका की आख़िर माजरा क्या हैं।
अरे क्या हुआ रवि, अब क्या सोच रहा हैं आशीष ने मुझसे पूछा।
रवि: रुक तू महेश से पूछ साला पंगा क्या हैं. ये फिर मरने आ गया तो कौन बचाने आएगा.
आशीष : ओये महेश तुम इधर आओ। हां माजरा हैं ये सब। ऐसे क्यो मरने आ गया ये। तुम कुछ समझाते नही। वो रोटी नही खाएगी तो क्या ये अपनी जान दे देगा।
महेश : बाबूजी आप नही समझोगे। मेरा बड़ा भाई बिनिया को बहुत प्रेम करता हैं। उसको दुखी नही देखना चाहता। पर क्या करे बिनिया भाभी भी किसी और को चाहत हैं। इसलिए कई बार रोटी नही खाती। राजेश को भी ये पता हैं। पर अब हम इसमे क्या करे। भाभी को समझाया हैं या तो राजेश को छोड़ दे या अपनी गृहस्ती संभाल ले। कुछ समझ ही नही आता। राजेश हैं की बिनिया को खोना नही चाहता। उसको खुश देखना चाहता हैं।
बिनिया का प्रेम कोई और तो राजेश का प्रेम बिनिया। बिनिया घर भी नही छोड़ना चाहती और राजेश के साथ खुश नही हैं। राजेश बिनिया को चाहता हैं पर वो उसकी पत्नी होकर भी कुछ भी नही हैं।
राजेश न तो हम दिल दे चुका का अजय देवगन बनना चाहता हैं और बिनिया फ़िल्म के हैप्पी एंड
की तरह सलमान की नही होना चाहती हैं। राजेश जान जरुर दे सकता हैं। मुझे इस प्रेम का कोई अर्थ
समझ नही आया....आख़िर ये प्रेम का कौन सा रंग हैं। कोई भी तो ग़लत नही हैं। बिनिया भले ही अपने पूर्व प्रेम की याद मैं हैं पर वो अपनी मर्यादा जानती है और अपना घर नही छोड़ना चाहती.
इस कशमकश के दोरान आशीष ने सभी को घर बेज दिया। बाद में पता चला की अब वो पानीपत से जा चुके हैं.....