Wednesday, October 21, 2009

आओ स्वागत करें और कुछ सीखें

आसमान में उड़ते नन्हे परिंदों को कभी गौर से देखा है आपने. अपनी मर्जी के मालिक हवा में मदमस्त तैरने वाले पंछी जब चाहें और जहाँ चाहें उड़ निकलते हैं... और जहाँ मन करता है, वहीँ बैठ जाते हैं. इनको किसी मुल्क में जाने के लिए विज़ा की जरुरत नहीं...किसी पासपोर्ट के ये मोहताज नहीं. कोई इंटरव्यू नहीं और न ही किसी तरह का टेस्ट. कुदरत की ये खुबसूरत नियामत किसी सीमा से नहीं बंधी. ईश्वर ने इस धरती को स्वर्ग की तरह रचा. और हमने क्या रचा....सीमाएं...जिनकी कंटीली तारें कहीं खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं. चाइना आज भारत के अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करना चाहता है और पाक के कब्जे वाले कश्मीर में बांध बना रहा है...विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर पर नजरें गड़ाये है. अमेरिका पूरे विश्व पर दादागिरी करना चाहता है. उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच ठनी हुई है. इजरायल और फिलिस्तीन में आये दिन ज़ंग हो रही है. हमारी आंकक्षाएं इतनी बढ गयी हैं की एक छोटा सा मुल्क मालदीव आज डूबने की कगार पर पहुँच गया है.
हमारे मुल्क में गुलाबी सर्दी के दस्तक देते ही दूसरे देशों के परिंदों का यहाँ आना शुरू हो गया है. इन्हें अठखेलिया करते देख लगता है मानों पूरब और पश्चिम की संस्कृतियाँ ओतप्रोत होकर इतना घुल गयीं हैं की अब जो ताना बंधा है वो कभी न टूटेगा...अलग अलग संस्कृतियों का सुन्दर मिलन तो हम हिन्दुस्तानियों की सभ्यता में है...तो फिर क्यों नहीं लेते हम इन मासूम परिंदों से सबक...क्यों नहीं बाँटते प्यार और खुशहाली का पैगाम. क्यों न इनके स्वागत में अपनी नदियों, तालों और घाटों को ही सुन्दर बना दें...इस बार जब ये पंछी अपने घर लौटें
तो धुल भरी गंगा, मैली यमुना और घाटों की स्मृतियाँ तो न लेकर लौटें...फिर हम ही तो कहते है...
अतिथि: देवो: भव:
कैद दिलों को खुला आसमा दिखाते परिंदें
कैसे उन्मुकत्ता और दूर फिकरप्रस्ती से
निश्छल प्रेम का एहसास कराते परिंदें
दूर देश से आये हैं आज वो
अब तो तेरा-मेरा छोड़ कुदरत के बन्दे
कब तक परीक्षा देंगे परिंदें

Tuesday, September 29, 2009

गुरु दा बाग़

वैसे तो मैं सभी धर्मो को ईश्वर के खुबसूरत रंग ही मानता हूँ मगर सिखिज्म से जाने कैसी आत्मीयता जुडी है. शायद ये दुनिया की सबसे बड़ी एंजियो भी है, जो बिना किसी सहायता के समाज के लिए बहुत कुछ करती है. खैर ये तो मेरा निजी मामला है...मगर मैं आज कुछ ख़ास शेएर करना चाहता हूँ...मैं अहिंसा पर कुछ सर्च कर रहा था, उसी दौरान मुझे कुछ पढ़ने को मिला, जिसे यहाँ लिखने में खुद को रोक नहीं सका...
देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले सभी सिख एक लड़ाई और भी लड़ रहे थे. गुरद्वारो की रक्षा और सुधार के लिए भी एक जंग चल रही थी. उस समय गुरूद्वारे महंतो के कब्जे में थे. गुरुद्वारों का प्रबंध अपने हाथो में लेने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी स्थापित की गयी. कही कही के महंतो ने कमेटी की बात मान ली और प्रबंध सौंप दिया. ब्रिटिश सरकार भी इस बात पर विचार करने लगी की ये काम कानूनन किया जाये और कानून बनाकर प्रबंध कमेटियों को दे दिया जाये. वहीँ अकालियों से नाराज होकर महंत जोर जबरदस्ती करने लगे थे. एक गुरूद्वारे में तो महंत ने बहुत अकालियों को बेहद करुरता से मरवा दिया था. इस तरह की एक घटना ननकाना साहब गुरूद्वारे में भी हो गयी थी. इससे अकाली भी क्रोध में आ गए. इस समस्या का हल निकालने के लिए अमृतसर में अकालियों ने गाँधी जी का सुझाया अहिंसा मंत्र अपना लिया. हालाँकि अहिंसा नीति सिखों के लिए नयी नहीं थी, मुस्लिम काल में भी सिखों ने इस निति को ग्रहण किया था और बहुत दुःख सहे थे.
अमृतसर से कुछ दूर है गुरु दा बाग़. यहाँ एक गुरुद्वारा है, जो महंत के कब्जे में था. अकालियों ने इसे अपने हाथो में ले लिया. अकालियों और महंत में तय हुआ की गुरुद्वारा अकालियों के हाथ में रहे और मठ महंत के कब्जे में. वहां कुछ जमीन थी, जिस पर बबूल का जंगल था. आगे चलकर आपस में फिर विवाद हो गया. शिरोमणि कमेटी की और से गुरूद्वारे का प्रबंध हो रहा था. ग्रन्थ साहब की सेवा के लिए सेवक थे. गुरुद्वारों में अक्सर लंगर लगता है. यहाँ भी लंगर लगाया जाता था. लंगर बनाने के लिए बबूल के पेड़ काट लिए जाते. महंत ने इस पर रोक लगायी और पुलिस बुला ली. सरकार की ओर से अकालियों को जंगल में जाने से रोक दिया गया. अकालियों ने सत्याग्रह करने की ठान ली. वे जंगल में पेड़ काटने जाते, पुलिस रोकती; न रुकने पर पहले तो गिरफ्तार कर लेती पर बाद में मारपीट कर भगाया जाने लगा. जो अकाली वहा जाता, उसे बुरी तरह पीटा जाता. सरकार ने भी वहा जाने के रास्ते पर कुछ दुरी से ही रोक लगा दी. अकालियों में बहुत जोश था. वे अमृतसर के अकाल तख्त में जाते, अहिंसा की सोगंध खाते और जंगल की और निकल जाते. जब रास्ता खुला होता, गुरूद्वारे में आकर रुकते. वहा से जंगल में जाते और पिटे जाते. जब रास्ता रोक दिया गया तो उनके जथे रस्ते में रोके और पीटे जाते. इतनी बुरी तरह मारते की वो बेहोश तक हो जाते. इसका शोर सारे देश में फ़ैल गया. दूर दूर से लोग वहा का सत्याग्रह देखने आते. कांग्रेस की बड़ी कमेटी भी वहां पहुंची. कमेटी ने देखा, तगडे सिख हाथ जोड़ कर आगे जाते, दूसरी तरफ से लोहे और पीतल से बनी लाठिया लिए पुलिस के सिपाही अकालियों को बुरी तरह मारने लगे. तब तक मारा जब तक सब बेहोश नहीं हो गए. यहाँ तक की केश तक पकड़ कर घसीटा गया. लोग यह देखने के लिए जमा होते, एक भी आदमी पुलिस पर हाथ नहीं उठाता था. अहिंसा का जवलंत उदहारण पूरे देश के सामने आया. हजारो लोग गिरफ्तार हुए. अकालियों की हिम्मत और शक्ति जबरदस्त थी. जो शक्ति मजबूत जवान बिना हाथ उठाये दिखा सके, उसे कोई भी शक्ति दबा नहीं सकती. सरकार की और से कोई रास्ता नहीं निकला. आखिर में सर गंगाराम ने महंत से जमीन लेकर अकालियों को दे दी. सत्याग्रह की उपयोगिता और इसमें निहित सम्भावना साबित हो गयी. इसका श्रेय सिखों को है. उन्होंने इसे अपनी सत्य निष्ठा और शक्ति से दिखला दिया..
(देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी की आत्मकथा से साभार)

Monday, August 3, 2009

Enough is enough

Enough is enough brother.
Last night, Rakhi Got marry with her dreamy rich boy and I was wailing. I advised you to sold the land but you dint hear me. I just wanted to travel to USA. Once I get the NRI license, who knows Rakhi would get marry with me. But you murdered my conspiracy.
Ve Buttey kyo veer naal ladai karda pya hei ( Butta, why are you fighting with your elder brother). Bapu ji (Father), you have put my name Butta and everybody is looking me as am I miracle. My (Butta) niece Kuku was playing with his friends last day. Sharma ji came to him and you know what he told to him? “Kuku, you are not good player. You should learn from your uncle. Everbody wanted his resign but he put his Boot (shoes) on the chair as like Angad’, sharma ji says. Bapu ji, Kuku asked me, “where is my shoes and who is Angad. Please don`t make my mind like curd”.
Enough is enough.
Today I was watching new release movie Love Aajkal. What a climax. I remembered my love story. I was beau of raajvanti (Rajo), but she got marry with rich guy shamsher. If Meera (Deepika) can break with her husband and got marry again with Saif, I should also try boss (I talked with myself). You know what happened, Where I sitted at multiplex, Rajo was also watching that movie with her husband. I shocked to see and felicitate to her. Her husband and two kids asked to her about me. She said, ‘this is Butta, my mango brother. Her husband ordered to his kids ‘Herraiy-Shairaiy, he is your Mamaji, say Namaste to him…..Is this Love Aajkal?
Enough is enough.

Thursday, July 30, 2009

खेड लै बस कल तक

खेड लै बस कल तक
मान्नी पप पप (आइसक्रीम का कप) बॊलती भागती
कुर्सी के नीचे छिप कर करती झां (हाइड एंड सिक)
नन्ही सी मुसकान और छॊटी छॊटी बाहॊं से बुलाती
शरारती कदमॊं से छनकाती पाजेब
भइयां देखॊ कितनी तेज बिटिया हमारी
पेन से खेले और कापियां करे रंगीन
निकलेगी बाहर, जितेगी दुनिया सारी।

चार दिनां दा हे बचपना
खेड लए बस कल तक
पढ लिखकर की करनगियां
कुडियां साड्डी नहीं जांदी स्कूल
तू वी ना सिर चढा
ना तू एनानूं पढा।

पप (आइसकीम) की जिद में निकले आंसू
रॊ मत मान्नी, सीख ले खवाहिशॊं कॊ दबाना
धियां नूं बॊझ ही मनया हे असीं आज तक
खेड लै तू बस कल तक।
खेड लै तू बस कल तक।।

Saturday, July 18, 2009

जन्मदिन

तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो अतुल. तुम्हें मालूम है, मैं मम्मा को झूठ बोलकर आई हूँ. एक घंटे में वापिस भी लौटना है...मेरे चेहरे पर परेशानी के भावों को देखकर भी अतुल सारे रास्ते मुस्कुराता रहा. बस थोडा सा इंतजार करो शोनू...हम पहुँचने वाले हैं. अगर अभी बता दिया तो सारा सरप्राईज ख़तम हो जायेगा. वो प्यार से मुझे शोनू बुलाता था. मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है की मेरा नाम गीतिका है. मुझे गीतिका या गीतू ही कहा करो...मैंने तुनककर जवाब दिया. नाराज क्यों होती हो शोनू. तुम गीतिका होगी अपने घर. मेरे घर आओगी तब तो मैं शोनू ही बुलाऊंगा. उसके जवाब में मुझे हमेशा प्रेम ही नजर आता. मैंने भी शरारत करते हुए उसे चिकोटी कट ली...आऊच, क्या करती हो शोनू की बच्ची..हम बाइक पर पन्द्रह मिनट मैं छोटी सी बस्ती में पहुँच गए. बस्ती को देखकर मैं कितने गुस्से में आ गयी थी. जी चाह रहा था, अतुल पर बरस पडू..जोर से चिल्लाऊ और झगडा शुरू कर दूँ. मैंने अतुल पर गुस्से के भाव बनाते हुए कहा, एक तो तुम्हें आज का दिन याद नहीं है. ऊपर से तुम मुझे किसी नरक में ले आये हो. मुझे लगा था तुम कुछ ऐसा करोगे, जैसे मोतियों की लड़ी से सजा हार पहनाओगे...आसमान से रोशनी से प्रेम का इजहार करोगे...फिजा में सोंधी-सोंधी खुशबू होती...दूर-दूर तक देखने वाला कोई न होता...बस तुम होते और में होती...साया भी हया में छुप जाता...काश! बदल भी मद्धम सा मुस्कुराकर छलक जाते...पर तुमने तो सारा मूड ही ख़राब कर दिया. बस्ती से जल्दी निकलो और मुझे अब घर जाना है. मुझे नहीं देखना तुम्हारा सस्पेंस. इतना सुनने के बाद भी अतुल मुस्कुराता रहा...नाराज क्यों होती हो शोनू. वो देखो, वहां अनाथ बच्चों का स्कूल देख रही हो. बस हमें वहीँ जाना हैं. मैं अपनी होने वाली संगिनी को एक बार यहाँ जरुर लाना चाहता था..उसे कुछ अपने बारे मैं बताना था...आज सही मौका भी है और दिन भी. अतुल के जवाब से मैं चुप तो हो गयी मगर मन ही मन बेहद क्रोध आ रहा था. इस वातावरण में रहना मुश्किल जो गया था मेरा. जैसे ही हम स्कूल पहुंचे, सभी बच्चे खड़े हो गए और पूरा स्कूल हैप्पी बर्थडे से गूंज उठा. बच्चे एक एक करके मेरे पास आये और गुलाब का फूल देखकर दीदी जन्मदिन मुबारक बोलते और मासूम सी मुस्कराहट के साथ बैठ जाते. मैं एकदम निर्जीव से खड़ी रही. कभी अतुल को देखती तो कभी बच्चों की तरफ. आँखें भी कब भरभरा गयीं, मालूम ही न चला. मैं अनजाने में अतुल को क्या क्या नहीं कह गयी थी. क्लास में ही हमने बच्चों के बीच में केक कटा और खूब मस्ती की. फिर अतुल ने मुझे कॉपी और बुक्स दी, अपने हाथों से बांटने को. अतुल मुझसे इतना प्रेम करता है, मैं कभी जान ही न सकी थी. ये पल मेरे लिए कितने अनमोल बन गए थे. प्रेम का एहसास...पहली बार कॉलेज में पहला दिन...बारिश में छत पर हल्ला मचाना...भाई के साथ कच्चे अमरुद तोड़ने की जिद और जाने क्या क्या...जैसे इन पलों को बयां कर पाना मुश्किल है वैसे ही आज के पल मेरे लिए अनमोल बन गए थे. मैंने आते हुए तय कर लिया था, घर पर अतुल के बारे में बता दूंगी...फिर चाहे जो कुछ हो. अगले महीने अतुल को उसके जन्मदिन पर शानदार पार्टी दूंगी... शाम को जब पिताजी घर लौटे तो उनके हाथ में मिठाई थी और बेहद खुश नजर आ रहे थे...मैंने सोचा यही सही मौका है सब बताने का. इससे पहले में कुछ बताती....

पिताजी

पिताजी

पिताजी ने माँ को बताया, गीतिका का रिश्ता पक्का कर आया हूँ. लड़के वाले ऊँचे खानदान के हैं. गीतू को उन्होंने पसंद कर लिया है. इसी महीने विवाह करना चाहते हैं. मैंने इतना अच्छा रिश्ता हाथ से नहीं जाने दिया और हां कर दी. बस जल्दी से तैयारी शुरू कर दो. पिताजी के एक एक लफ्ज मेरे हृदय को चीरते गए. मानो कोई पत्थर मर रहा हो. इतनी हिम्मत भी नहीं जुटा सकी की अपने प्रेम के बारे में बता सकूँ. एक ही दिन में सुबह खुशिओं से झोली भरी थी, और शाम को जाने किसकी नजर लग गयी. पापा को मैं अच्छी तरह जानती थी, वो रिश्ता पक्का कर आये हैं और जबान दे चुके हैं. अब मेरी लाख कोशिश पर भी रिश्ता तोडेंगे. कही से कोई उम्मीद की किरण भी तो नजर नहीं रही थी. एक बार सोचा अतुल के साथ भाग जाऊ, जाने किस दर से खामोश बैठ गयी. जन्मदिन की वो रात नींद भी तो दुश्मन बन गयी थी मेरी. एक एक पल बैरी हो गया मानो. मोबाइल के एसएमएस पैक भी तो ख़तम हो गया था. अतुल से बात भी नहीं हो पा रही थी. पूरी रात जागते हुए मैं दिन के उन पलों को याद करती रही, जब हम बस्ती में बच्चों के साथ थे. सुबह जब अतुल को बताउंगी तो उस पर क्या गुजरेगी, यही सोचकर भी सहम गयी थी. पर सच तो बताना ही पड़ेगा उसे. कैसे करेंगे, कैसे होगा सब ठीक, यही सोचते सोचते कब आँख लग गयी पता नहीं चला. सुबह सबसे पहले एसएमएस डलवाया और अतुल को अर्जेंट कॉल करने के लिए बोल दिया. मेसेज मिलते ही कॉल गयी. मुझे बिलकुल नहीं सूझ रहा था, कहाँ से बात शुरू करूँ. पहले तो मैं उसे जन्मदिन पार्टी की बधाई देती रही और जाने क्या क्या बोलती रही. मगर वो हर बार किसी अर्जेंट मेसेज की याद दिला देता. आखिर में मैंने हिम्मत जुटाकर उसे सच बता दिया की पापा ने मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. इतना सुनते ही खामोशी छा गयी दोनों तरफ. ना मेरे मुंह से कोई अल्फाज निकला और ना उधर से कोई आवाज आई. करीब दो मिनट बाद अतुल की आवाज आई...चिंता क्यों करती हो शोनू. अपनी माता या पिताजी से बात करके देख लो. अगर तुम कहो तो मैं बात करूँ, या फिर अपने माता-पिता को भेज दू तुम्हारे घर. मैंने घबराते हुए जवाब दिया, ऐसा मत करना अतुल. तुम मेरे पिताजी के गुस्से को नहीं जानते....और मुझमे इतनी हिम्मत नहीं हेई की उनसे कह सकूँ की मैंने खुद अपने लिए किसी को पसंद कर लिया है. मेरे इस जवाब पर अतुल बिलकुल नाराज नहीं हुआ. कैसे हिम्मत से उसने बोल दिया, शोनू, अगर कायनात में सबसे अनमोल कोई है तो सबसे पहले माता-पिता ही हैं. इसके बाद इश्वर, फिर तुम और बाद में मैं. जो तुम्हारा हृदय कहें वाही करो... मैं बिलकुल भी बुरा नहीं मानूगा. हमने प्रेम शायद कभी हासिल करने के लिए तो नहीं किया ना....उसकी इन बातों मुझमे कितनी हिम्मत गयी थी. सोचा था, सारे गम अतीत के पलों के संग बिता दूंगी. ये पल तो खुद ईश्वर भी मुझसे नहीं छीन सकता. इसके बाद फिर मैंने उसे फ़ोन नहीं किया. शायद उसने भी कोशिश नहीं की. मैं इतनी कमजो थी की माता-पिता को कुछ नहीं बता सकी. दर था की कही पिताजी अतुल को कोई चोट पहुंचा दें. अगले ही हफ्ते आनन-फानन में सगाई के साथ ही मेरा विवाह भी कर दिया. सोचा ठा की शादी से पहले उसे एक बार फ़ोन करुँगी, मगर उसका भी मौका नहीं मिला. आज दीपक के साथ शादी को एक माह से ज्यादा हो गया है. अचानक दीपक ने सुबह तारीख पुच ली तो पुराने दिन मनो एकदम आँखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगें. वो पार्क में अतुल के साथ घंटो बेठे रहना, रात-रात तक एसएमएस करना और कॉलेज से बंक मारकर फिल्म देखना.....आज ही तो उसका जन्मदिन है. क्या में इतनी कमजोर हो गयी हूँ की उसे विश भी नहीं कर सकती. नहीं...मैं इतनी कमजोर नहीं हू. मैं उसे फ़ोन पर विश जरुर करुँगी. तो क्या हुआ, जो हम अलग-अलग हो गए. आखिर दोस्ती का रिश्ता तो मैं निभा ही सकती हूँ..क्या पता वो भी मेरे फ़ोन का इंतजार कर रहा हो. कांपते हाथों से मैंने फ़ोन उठाया और नंबर डायल करने लगी. चाहकर भी आखिरी अंक नहीं दबा सकी और हृदय से यही निकल पाया, जन्मदिन मुबारक अतुल.....और फ़ोन वहीँ रख दिया.

Wednesday, July 15, 2009

कायरता नही अहिंसा

अहिंसा कोई भी चलताऊ शब्द नहीं है। कुछ इसे कायरता बोलते हैं तो कुछ इसे बकवास।
वास्तव में इसे जीवन में उतारना बेहद कठिन है। इसे ठीक से नहीं समझने वाले और इसकी पालना नहीं करने वाले कायर हैं। हिंसा में कायरता है अहिंसा में नहीं। जहाँ कायरता आ गयी वहां अहिंसा रह नहीं सकती। अहिंसा उसी में हो सकती है जो यह सोचता है की नुक्सान पहुँचाना ही बुरा है और किसी को दुःख देना अन्याय है। यदि कोई किसी के अन्याय को इसलिए सहता है की प्रतिकार करने पर और कष्ट उठाना पड़ेगा और इसलिए अन्याय सहना उचित है तो यह अहिंसा नहीं कायरता है। अहिंसा तो वह है जब किसी के लिए प्रतिकार को उचित समझते हैं और उसके लिए बिना किसी डर के डटे रहते है। अन्यायी कितना ही जुल्म कर ले मगर हम अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे। बदला लेने के लिए कोई बल प्रयोग न करेंगे। अपने अधिकार के लिए उसे कष्ट नहीं देंगे। यह तभी संभव है जब अपने पक्ष में पूरा विश्वास हो, संकल्प हो और विपक्षी को कष्ट न पहुंचाने का पक्का विचार हो। आखिर में अहिन्सातक शख्स की ही जीत होती है।
अगले कॉलम में हिंसा और अहिंसा की सेना (बल) पर चर्चा करेंगे.

Thursday, July 9, 2009

हमारे ताज पर दाग क्यो

रवि तू ये क्या कर रहा है... मुझे भी तो बता।
पिंकी ये हमारे देश का नक्शा है। आज मैडम ने नक्शा भरना सिखाया है और घर से भरकर लाने को कहा है... मैंने पिंकी (छोटी बहिन) को जवाब देते हुए कहा, ये देख हम यहाँ पर हैं...और ये रहा बॉम्बे।
इतने में पापा भी आ गए और मुझे एक ताज देकर कहा, बेटा इससे संभाल कर रखना...ये अब तुम्हारी पगड़ी हो गयी (असल में वो ताज बांकेलाल की कॉमिक्स के साथ मुफ्त मिला था। मुझे कॉमिक्स अच्छी लगती थी तो पापा हमेशा न्यू कॉमिक्स लेकर आते थे।)
पापा ने उस ताज से अपने स्वाभिमान और गौरव की सिख दी थी ( जो उस समय शायद मैं ज्यादा समझ नहीं सका) इतने में पापा ने मेरे हाथ में नक्शा देखा और कहा देखो बेटा इसमें सबसे ऊपर है जम्मू-कश्मीर। ये हमारे देश का ताज है...
अच्छा पापा...क्या हम वहा जा सकते हैं, अपने ताज को देख सकते हैं...पिंकी ने खुश होते हुए पूछा।
अभी नहीं बाबू...हमारे ताज को किसी की नजर लग गयी है...पापा ने जवाब दिया।
किसकी नजर लगी है...देखो नक्शे में तो हमारा देश एक ही है...फिर क्यों नहीं जा सकते...पिंकी ने मासूमियत से पूछा।
पिंकी के उस सवाल का जवाब ना मेरे पास था और न पापा के पास....( उन दिनों हमारे पड़ोस के किसी व्यक्ति की कश्मीर में हत्या कर दी गई थी)
आज जब हम गर्मियों में बाहर घुमने का प्लान बनातो बन रहे थे, उसी समय पिंकी इंडिया का बड़ा मैप ले आई...रवि क्यों न हम साउथ की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर चले....पिंकी ने सुझाव दिया।
मुझे फिर से बचपन याद आ गया और मैंने कहा क्यों ना जम्मू कश्मीर चले....
नहीं भाई...हमारे ताज को किसी की नजर लग गयी है...कल ही टीवी पर श्रीनगर में कर्फु और कुछ लोगो के मरने की खबर आ रही थी.....भाई ये नजर कब दूर होगी...क्या हमारा गौरव इतना कमजोर है....पिंकी के सवाल का जवाब आज भी मेरे पास नहीं है.....क्या हम कभी एक बार बिना सोचे और डरे कभी अपने ताज को देखने जा पाएंगे....

Wednesday, July 8, 2009

आओ इश्क के खवाब पर चले

अब सपने है..... सपनो का क्या।
धरम भा जी को भी तो ड्रीम गर्ल मिल गयी। गलती से एक ड्रीम गर्ल मेरी भी सपने में आ गयी। नादान हु ना। पहली पहली बार हरदय धड़का।
इससे पहले की नॉर्मली इजहार होता, कवी महोदय आ पहुचे अपनी टांग अडाने। उनका तर्क भी सॉलिड था। बोले पुराने स्टाइल में कोई कविता सुनाओ, फिर देखो कमाल। मेरी ओके बोलते ही हो गए जनाब शुरू।
(सॉरी बिग बॉस. सहना सीखो मेरे साथ)
मैं था शिथिल पत्थर।
थम चुकी थी सांसे, जम चुका था लहू भी मेरा।
क्यों मूरत अपनी दिखाई।
क्यों फिर लौट कर आ गए
फिर क्यों मुझमे प्राण लौटा गए।
..............................
आँखें मेरी थी गयी पथरा, जग को भुला बैठा।
क्यों फिर अपनी आँखों की माया दिखलाई.
मेरी आँखें अब तक तकती हैं तेरी राहे.
क्यों मुझमे प्राण लौटा गए
.......................................

चुपचाप सोया था मैं नींद में
क्यों खोल दिया सपनो का द्वार
खवाब भी तो अपने ना रहे
फिर क्यों मुझमे प्राण लौटा गए।

...............................
तेरी भोली मुस्कान, भोली हया में जाने कैसा है जादू
खेलता बचपन, बारिश से भीगता मन
पवित्र मेरा प्रेम, लगे मुझे हर जगह आप आये
क्यों मुझमे प्राण लौटा गए

....................
मैंने कवी का पर्चा उठाया और चलने ही लगा था ड्रीम गर्ल के पास। इतने में एक स्मार्ट लड़का प्रकट हुआ और बोला.. नालायक ये पर्चा सुनाया तो वो तेरे प्राण ले ही लेगी........
टाइम हैस बीन चेंज्ड बॉस.....मेरा आईडिया मान और देख मैजिक.........मैं नए ज़माने का कवी हूँ...देखना मेरे रिवोल्वर गोली वर्ड का कमाल
मैंने कहा चलो आप ही सुनाओ...शायद कुछ बात बने।
I have never never seen an angel
क्या आप बतायेंगी वो रास्ता
आई हो जहा से
really if it`s not a dream
defenetly you would come from the stars
.................

I`m thankful them, who send you on earth
देखो आसमा खाली खाली
और रोशन हुई ये धरती
आओ मिलकर रंग भरे
दोस्ती की एक नयी शुरुआत करे

...................
काके जल्दी उठ ते पापा नु छड आ......फिर आके बहन नु वि कॉलेज ले जाना ही..........समझे कुछ........अगर इन कवियों के चक्कर में पडोगे तो सोते ही रहोगे..........