Tuesday, March 2, 2010

...मैं कमजोर नहीं हूं

दीदी, 'अब हमारी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाओ। आप भी अपने लिए जीवनसाथी तलाश लो'।
'...नहीं आरती। उम्र बीत गई है। अब तो सीधे परमधाम पहुंच जाऊं, उतना ही काफी है। तुम मेरी चिंता छोड़ो, और अपनी जिंदगी को संवारो'।
उम्र के चालीसवें पड़ाव पर पहुंची सुमन को जिंदगी ने हर कदम पर धोखा ही दिया। 18वें साल में आगे पढऩे की आरजू सीने में दफना शराब का ठेका चलाने वाले के साथ विवाह के बंधन में बंधना पड़ा। मां-बाप ने पैसा देखकर शादी कर दी, सोचा बड़ी की शादी ऊंचे घर में हो जाएगी तो छोटों का भी कुछ न कुछ जुगाड़ हो जाएगा। शादी के दो साल बाद शराबी पति ट्रक एक्सीडेंट में मारा गया और ससुराल वालों ने कुलच्छनी और बुरी नजर वाली कहकर घर से निकाल दिया।
सोचा, अब जीने में क्या रखा है। पर, मौत को गले लगाना भी कहां तक ठीक है। 'हां, सह लूंगी दुनिया के ताने। पर ईश्वर के अनमोल तोहफे जिंदगी को बिना उसकी अनुमति क्यों जाया करुं'।
मायके में ही कपड़े सिलाई कर दो छोटी बहनों को पढ़ाया। छोटे वाली आरती तो कम्प्यूटर भी चला लेती है। दिन-रात कपड़े सिलते-सिलते आंखें भी जवाब देने लगी। जिन आंखों पर काजल लगाए बिना स्कूल न जाती थी, आज उनके नीचे काले धब्बे पड़ गए थे। लाचारी में पहना चश्मा सुमन को बहनों की आंखों में नजर आते उनके सुनहरे दिनों के सामने कुछ न था।
'दीदी...दीदी...तुम्हारे लिए फोन है'। आरती की आवाज से जैसे होश में आई सुमन ने ये भी ना पूछा किसका फोन है।
हैलो, 'क्या आप सुमन जी बोल रही हैं'।
जी हां, 'मैं सुमन बोल रही हूं, आप कौन बोल रहे हैं'।
'मैं राजेंद्र सहगल बोल रहा हूं। मैंने आपका बायोडाटा शादी डाट काम पर देखा था। मुझे लगता है कि हमें एक बार मिलना चाहिए...'
'एक मिनट, मैं आपकी बात नहीं समझी। शायद आपको गलतफहमी हो गई है। आपने गलत नंबर डायल कर लिया है। आय एम सॉरी', सुमन ने यह कहकर फोन काट दिया।
'क्या हुआ दीदी, क्या कह रहे थे वो, फोन पर'।
'तो तू जानती है, किसका फोन था। तुझे शर्म नहीं आती, अपनी बड़ी बहन से इस तरह का मजाक करते हुए'। सुमन ने बिना कोई जवाब मांगे, आरती को बुरी तरह डांट दिया।
'दीदी, मुझे माफ कर दो। मैंने अनजाने में आपका दिल दुखा दिया। मैंने आपसे बिना पूछे आपकी फोटो और एक बायो डाटा शादी डॉट काम पर रजिस्टर्ड कर दिया था। अब हम बड़े हो गए हैं दीदी। अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। आखिर कब तक हमारे लिए अपनी जिंदगी को सुई में धागे की तरह पिरोती रहोगी। क्या आपका जीवन एक खाली कपड़े से निकलकर सजा हुआ सूट नहीं बन सकता। जिस कपड़े में आप सुई लगाती है, उस सुई को जरा अपने जीवन में भी अब पिरो दो दीदी...। आपको मेरी कसम। एक बार राजेंद्र जी से मिल लो। अगर न पसंद आएं तो इनकार कर देना'।
आरती की बातों से सुमन की आंखें भरभरा गई और राजेंद्र को फोन कर मिलने की रजामंदी दे दी।
'आज मैं दीदी को खुद अपने हाथों से तैयार करूंगी'।
दूसरों के लिए कपड़े सिलते-सिलते सुमन खुद तो जैसे सजना ही भूल गई थी। जीवन में ऐसा भी मोड़ आएगा, उसने कभी नहीं सोचा था। पहली बार आरती और सुमन एकसाथ राजेंद्र से मिलने गई। फिर दो-तीन बार की मुलाकात में सुमन को भी राजेंद्र से प्रेम हो गया...और एक दिन राजेंद्र ने सुमन के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया।
अचानक चंद मुलाकातों में बात यहां तक पहुंच जाएगी, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। जिंदगी कैसे करवट बदल रही थी। राजेंद्र उसे हर वो खुशी दे सकता था, जिसे शायद उसने ख्वाबों में भी सोचा था।
'नहीं...नहीं...ये सच नहीं हो सकता। मैं अपनी खुशियों में इतना कैसे डूब सकती हूं। अब तो अंधेरों से मैंने लडऩा सीख लिया था। क्या अब मुझे किसी सहारे की जरूरत है। क्या फिर मैं कमजोर हो जाऊंगी...। जब मुझे कमजोर समझकर दुनिया ने पीछे छोड़ दिया..अबला नारी समझकर तानों से मुझे आत्महत्या तक सोचने पर मजबूत कर दिया...छोटी बहनों को दुनिया से लडऩे की ताकत देने के लिए खुद को मजबूत किया...क्या आज मैं उनको छोड़ अपनी खुशियां तलाशने चल पड़ूं।
राजेंद्र, आज अगर मैं कमजोर पड़ी तो फिर शायद उठ नहीं पाऊंगी। ये दुनिया फिर नारी को कमजोर समझ आगे निकल जाएगी। पर मैं कमजोर नहीं हूं।
मुझे माफ कर देना...'