Wednesday, October 21, 2009

आओ स्वागत करें और कुछ सीखें

आसमान में उड़ते नन्हे परिंदों को कभी गौर से देखा है आपने. अपनी मर्जी के मालिक हवा में मदमस्त तैरने वाले पंछी जब चाहें और जहाँ चाहें उड़ निकलते हैं... और जहाँ मन करता है, वहीँ बैठ जाते हैं. इनको किसी मुल्क में जाने के लिए विज़ा की जरुरत नहीं...किसी पासपोर्ट के ये मोहताज नहीं. कोई इंटरव्यू नहीं और न ही किसी तरह का टेस्ट. कुदरत की ये खुबसूरत नियामत किसी सीमा से नहीं बंधी. ईश्वर ने इस धरती को स्वर्ग की तरह रचा. और हमने क्या रचा....सीमाएं...जिनकी कंटीली तारें कहीं खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं. चाइना आज भारत के अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करना चाहता है और पाक के कब्जे वाले कश्मीर में बांध बना रहा है...विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान कश्मीर पर नजरें गड़ाये है. अमेरिका पूरे विश्व पर दादागिरी करना चाहता है. उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच ठनी हुई है. इजरायल और फिलिस्तीन में आये दिन ज़ंग हो रही है. हमारी आंकक्षाएं इतनी बढ गयी हैं की एक छोटा सा मुल्क मालदीव आज डूबने की कगार पर पहुँच गया है.
हमारे मुल्क में गुलाबी सर्दी के दस्तक देते ही दूसरे देशों के परिंदों का यहाँ आना शुरू हो गया है. इन्हें अठखेलिया करते देख लगता है मानों पूरब और पश्चिम की संस्कृतियाँ ओतप्रोत होकर इतना घुल गयीं हैं की अब जो ताना बंधा है वो कभी न टूटेगा...अलग अलग संस्कृतियों का सुन्दर मिलन तो हम हिन्दुस्तानियों की सभ्यता में है...तो फिर क्यों नहीं लेते हम इन मासूम परिंदों से सबक...क्यों नहीं बाँटते प्यार और खुशहाली का पैगाम. क्यों न इनके स्वागत में अपनी नदियों, तालों और घाटों को ही सुन्दर बना दें...इस बार जब ये पंछी अपने घर लौटें
तो धुल भरी गंगा, मैली यमुना और घाटों की स्मृतियाँ तो न लेकर लौटें...फिर हम ही तो कहते है...
अतिथि: देवो: भव:
कैद दिलों को खुला आसमा दिखाते परिंदें
कैसे उन्मुकत्ता और दूर फिकरप्रस्ती से
निश्छल प्रेम का एहसास कराते परिंदें
दूर देश से आये हैं आज वो
अब तो तेरा-मेरा छोड़ कुदरत के बन्दे
कब तक परीक्षा देंगे परिंदें