Thursday, August 16, 2018

युद्ध की धरा पर अटल पांव, बातें हाली की

कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है।
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है।
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है।
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है।
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है।


युद्ध की धरा पर अटल पांव, बातें हाली की

पानीपत की धरा। सुल्तान पंरपरा को रौंदकर बादशाही हुकूमत की गवाह। लोधी की कब्र जो एक पार्क में सुशोभित है। मुगल का भी तो अंत ही हुआ। अयोध्या में बाबरी मस्जिद तो सारी दुनिया जानती है। पर पानीपत में भी एक बाबरी मस्जिद है। बाबर की बनाई मस्जिद। लाखों के लाख मराठे यहां अकाल मौत की नींद सो गए। उसी जमीं पर जब अटल के पांव पड़े तो उन्होंने कोई युद्ध गीत नहीं गाए। उन्होंने कोई रक्त की बात नहीं की। कवि ह्रदय ने युद्ध का संवाद छेड़ा भी तो जनता के लिए ही। जन जन के आंसुओं का हिसाब मांगा। अपनी कविता में भी तो उन्होंने कहा है, रंक को तो रोना है।
आइये आपको बताते हैं, अटलजी जब पानीपत में आए थे। या यूं कहें कि जब- जब पानीपत आए, तब-तब उन्होंने जिंदगी में आगे बढऩे का ही संदेश दिया। बात 70 के दशक की है। अटलजी पानीपत के एक जलसे में आए थे। तब के जनसंघ के बड़े नेता फतेहचंद विज ने उन्हें बुलाया था। आज उनके बेटे प्रमोद विज ने जिले में भाजपा की कमान संभाली हुई है।
तब अटलजी ने, खुले मंच से जंगों की बात नहीं, हाली की बात की थी।
बोले थे, चार डग हमने भरे तो क्या किया, है पड़ा मैदान कोसों का अभी।
जरा सोचिये, कितनी बड़ी बात कही। हाली के जरिये, कह गए। कितनी मंजिलें तो अभी बाकी हैं।
उन्हीं मंजिलों में एक थी पानीपत रिफाइनरी की कहानी। आज दुनियाभर में पानीपत से बना प्लास्टिक अगर मशहूर है तो रिफाइनरी और नेफ्था क्रेकर प्लांट की वजह से। आज हमारे विमान अगर उड़ान भरते हैं, तो उसकी वजह है पानीपत की रिफाइनरी। यहीं का रिफाइंड तेल विमानों में भरा जाता है।
तो ऐसे थे हमारे अटल।
तो क्या ये मान लिया जाए कि अटलजी केवल विकास की बात करते थे।
जवाब होगा, जी नहीं।
वो विकास से पहले इंसान बनना सिखाते थे।
हाली की ही एक कविता का उन्होंने जिक्र किया
बोले थे- फरिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना।
मगर इस में लगती है मेहनत ज्यादा।

आप सोच रहे होंगे अटलजी के बारे में इतनी बातें हो गईं, पर उनका एक खास शौक तो रह ही गया। वो शौक था खाने का। उन्होंने कभी इसे छिपाया नहीं।

ग्वालियर के बहादुरा के बूंदी के लड्डू हों या फिर दौलतगंज की मंगौड़ी। अटल जी के प्रिय व्यंजनों में से हैं. हर दुकान से उनकी यादें जुड़ी हुई हैं। बहादुरा के लड्डू उन्हें इसलिए भी पसंद थे क्योंकि वे ग्वालियर शहर के शिंदे की छावनी में जन्मे और वहीं पले-बढ़े। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह से ग्वालियर के हलवाई के लड्डू, जलेबी और कचौड़ी का जायका नहीं गया। अटलजी को चायनीज, खिचड़ी, खीर और मालपुआ बहुत पसंद थे। वहीं दिल्ली में रहने के दौरान वे अक्सर पराठे वाली गली, सागर और चंगवा के यहां जाकर कुछ न कुछ जरूर खाते थे. मिठाई अटलजी के पकवानों की मेन्यू लिस्ट में हमेशा सर्वोपरि रही। भांग के अटलजी शौकीन रहे हैं। उनके लिए उज्जैन से भांग आती थी.

इन सबके के बीच, वो पानीपत की कचौडिय़ों के भी शौकीन थे। किले के पास चिमन हलवाई की कचौड़ी की उन्हें खबर लगी तो सीधे पहुंच गए थे वहां। अपने साथियों को भी खिलाई। तब एक जगह उन्होंने कहा था, पानीपत की कचौड़ी तो शानदार है।

तो ऐसे थे हमारे अटल।