Thursday, February 25, 2010

हो हो....होली

होली, कहां हो तुम होली।
कहीं दिखाई क्यों नहीं देती। क्या तुम्हारा आईएसआई ने अपहरण तो नहीं कर लिया। ये मुए आईएसआई वाले भारत में हर फसाद की जड़ हैं। नहीं, नहीं आईएसआई तुम्हारा अपहरण कर क्या करेगी। वो तो पहले ही अलग-अलग रंग के सियार बने घूम रहे हैं। तुम तो प्रेम बांटने वाली हो, दुनिया को एक ही रंग में ढलने का संदेश देने वाली।
अब इतना भी मनुहार मत करवाओ। आओ, न। हम सब तुम्हारा एक साल से इंतजार कर रहे हैं। रोज हमें पीने को भले ही पानी न मिले, पर आज तो पानी की नदियां बहाकर ही दम लेंगे। कल्लू से बदला लेने के लिए तो मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। बुरा न मानो होली का नारा लगाते हुए कल्लू की सारी हेकड़ी निकाल दूंगा। रोज चमचमाती हुई सिटी होंडा पर जब जबड़ा खोलता हुए निकलता हैं तो मेरे तन-बदन में आग लग जाती है।
तुम क्या जानो, हमने तुम्हारे स्वागत में क्या-क्या तैयारियां कर रखी हैं। पिछले महीने से कीचड़ और कूड़े का ठेका हमने ले लिया था... इतना ग्रीस भी इकट्ठा हो गया है पूरे शहर को रंग दें।
ठेके से याद आया, निगोड़ी काली नागनी- दारू भी देखो तुम्हारे आगमन पर सस्ती हो गई है। फरवरी-मार्च का महीना है। ठेके वाले दारू बेचने पर उतारू हैं, सस्ती मिली तो दस-बीस पेटियां खरीद ली है। कहीं तुम चीन में तो नहीं चली गई। नाटे कद और चपटी नाक वाले इन चीनियों ने हमारी नाक में दम कर रखा है। होली, दिवाली हो या फिर दशहरा। हमारे सारे जश्न तो इनके लाडले ही होते जा रहे हैं। बच्चों को चीनी पिचकारियों और रंगों के बिना मजा ही नहीं आता। हमारा तो धंधा ही चोपट हो गया है।
इतने गिड़गिड़ाने के बाद होली आखिर प्रकट हो ही गई। मगर ये क्या! तुम्हें क्या हो गया। तुम्हारा चेहरा तो दलाल स्ट्रीट से निकले उसे आदमी की तरह हो गया है जो घुसा था तब करोड़पति था और बाहर आया तो गंजपति हो गया। बेचारे के बाल तक नीलाम हो गए हो जैसे।
देखो तुम हर साल मुझे मत बुलाया करो। मैं वैसे ही तुमसे दुखी हूं। पहले तो दुश्मन को दोस्त बनाते थे। पर अब...तुम सारा साल जिस कल्लू की तारीफ करते नहीं थकते, मेरे आते ही उसे पीटने पर उतारू हो जाते हो। राह चलती लड़कियों को छेड़ते हो, और बदनाम मैं हो जाती हूं...। पानी तुम बहाते हो और नाम मेरा लगा देते हो।
ये तुम कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हों। ये 21वीं सदी है। डार्विन का सिद्धांत भूल गई। इंसान लगातार बदल रहा है। पहले हम बंदर से इंसान बने और अब इंसान से बंदर बन रहे हैं...इससे पहले कि तुम फिर एक साल के लिए भाग जाओ...आओ तुम्हें कीचड़ स्नान करवा देता हूं।
बुरा न मानो होली है!

वो होली
जब तुम लाती थी खुशियां ढेर
पराए भी हो जाते अपने
आज होली
रंग गुलाबी, पीला हो या नीला
झूठी मुस्कान और मन मैला

2 comments:

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

हरकीरत ' हीर' said...

कीचड़ और कूड़े का ठेका ...??

बल्ले-बल्ले.....!!