अहिंसा कोई भी चलताऊ शब्द नहीं है। कुछ इसे कायरता बोलते हैं तो कुछ इसे बकवास।
वास्तव में इसे जीवन में उतारना बेहद कठिन है। इसे ठीक से नहीं समझने वाले और इसकी पालना नहीं करने वाले कायर हैं। हिंसा में कायरता है अहिंसा में नहीं। जहाँ कायरता आ गयी वहां अहिंसा रह नहीं सकती। अहिंसा उसी में हो सकती है जो यह सोचता है की नुक्सान पहुँचाना ही बुरा है और किसी को दुःख देना अन्याय है। यदि कोई किसी के अन्याय को इसलिए सहता है की प्रतिकार करने पर और कष्ट उठाना पड़ेगा और इसलिए अन्याय सहना उचित है तो यह अहिंसा नहीं कायरता है। अहिंसा तो वह है जब किसी के लिए प्रतिकार को उचित समझते हैं और उसके लिए बिना किसी डर के डटे रहते है। अन्यायी कितना ही जुल्म कर ले मगर हम अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे। बदला लेने के लिए कोई बल प्रयोग न करेंगे। अपने अधिकार के लिए उसे कष्ट नहीं देंगे। यह तभी संभव है जब अपने पक्ष में पूरा विश्वास हो, संकल्प हो और विपक्षी को कष्ट न पहुंचाने का पक्का विचार हो। आखिर में अहिन्सातक शख्स की ही जीत होती है।
अगले कॉलम में हिंसा और अहिंसा की सेना (बल) पर चर्चा करेंगे.
आदरणीय लोग अधिक ख़तरे में हैं -सतीश सक्सेना
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परिवार में दख़लंदाज़ी , बड़प्पन के कारण हर समय तनाव, नींद की कमी ,
अस्वस्थ भोजन के साथ हाई बीपी , मोटापा, शारीरिक गतिविधियों में कमी के कारण
बढ़ती डायबिट...
5 weeks ago
2 comments:
एक बार एक स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिता थी। गांधी जी को उसमें बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। प्रतियोगिता का विषय था- अहिंसा बनाम हिंसा। संयोग वश हिंसा के समर्थन में एक छात्र ने इतने जोरदार तर्क दिए कि वह प्रथम आ गया। स्कूल प्रबंधकों ने शायद सब कुछ पूर्व नियोजित रखा था। क्योंकि जीतने वाले छात्र को पुरस्कार में तलवार मिलनी थी। पुरस्कार गांधी जी के हाथ दिया जाना था। पुरस्कार देते हुए गांधी जी ने विजेता छात्र से कहा- बेटा इसका उपयोग वहीं करना जहां अहिंसा का हनन हो रहा हो और उसी के खिलाफ करना जो अहिंसक पर प्रहार कर रहा हो।
बढिया लिख रहे हो। पिछली पोस्ट भी पढ़ी है। उसपर भी टिप्पणी की है। लिखते रहो।
सही कहा है |
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