Saturday, July 18, 2009

जन्मदिन

तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो अतुल. तुम्हें मालूम है, मैं मम्मा को झूठ बोलकर आई हूँ. एक घंटे में वापिस भी लौटना है...मेरे चेहरे पर परेशानी के भावों को देखकर भी अतुल सारे रास्ते मुस्कुराता रहा. बस थोडा सा इंतजार करो शोनू...हम पहुँचने वाले हैं. अगर अभी बता दिया तो सारा सरप्राईज ख़तम हो जायेगा. वो प्यार से मुझे शोनू बुलाता था. मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है की मेरा नाम गीतिका है. मुझे गीतिका या गीतू ही कहा करो...मैंने तुनककर जवाब दिया. नाराज क्यों होती हो शोनू. तुम गीतिका होगी अपने घर. मेरे घर आओगी तब तो मैं शोनू ही बुलाऊंगा. उसके जवाब में मुझे हमेशा प्रेम ही नजर आता. मैंने भी शरारत करते हुए उसे चिकोटी कट ली...आऊच, क्या करती हो शोनू की बच्ची..हम बाइक पर पन्द्रह मिनट मैं छोटी सी बस्ती में पहुँच गए. बस्ती को देखकर मैं कितने गुस्से में आ गयी थी. जी चाह रहा था, अतुल पर बरस पडू..जोर से चिल्लाऊ और झगडा शुरू कर दूँ. मैंने अतुल पर गुस्से के भाव बनाते हुए कहा, एक तो तुम्हें आज का दिन याद नहीं है. ऊपर से तुम मुझे किसी नरक में ले आये हो. मुझे लगा था तुम कुछ ऐसा करोगे, जैसे मोतियों की लड़ी से सजा हार पहनाओगे...आसमान से रोशनी से प्रेम का इजहार करोगे...फिजा में सोंधी-सोंधी खुशबू होती...दूर-दूर तक देखने वाला कोई न होता...बस तुम होते और में होती...साया भी हया में छुप जाता...काश! बदल भी मद्धम सा मुस्कुराकर छलक जाते...पर तुमने तो सारा मूड ही ख़राब कर दिया. बस्ती से जल्दी निकलो और मुझे अब घर जाना है. मुझे नहीं देखना तुम्हारा सस्पेंस. इतना सुनने के बाद भी अतुल मुस्कुराता रहा...नाराज क्यों होती हो शोनू. वो देखो, वहां अनाथ बच्चों का स्कूल देख रही हो. बस हमें वहीँ जाना हैं. मैं अपनी होने वाली संगिनी को एक बार यहाँ जरुर लाना चाहता था..उसे कुछ अपने बारे मैं बताना था...आज सही मौका भी है और दिन भी. अतुल के जवाब से मैं चुप तो हो गयी मगर मन ही मन बेहद क्रोध आ रहा था. इस वातावरण में रहना मुश्किल जो गया था मेरा. जैसे ही हम स्कूल पहुंचे, सभी बच्चे खड़े हो गए और पूरा स्कूल हैप्पी बर्थडे से गूंज उठा. बच्चे एक एक करके मेरे पास आये और गुलाब का फूल देखकर दीदी जन्मदिन मुबारक बोलते और मासूम सी मुस्कराहट के साथ बैठ जाते. मैं एकदम निर्जीव से खड़ी रही. कभी अतुल को देखती तो कभी बच्चों की तरफ. आँखें भी कब भरभरा गयीं, मालूम ही न चला. मैं अनजाने में अतुल को क्या क्या नहीं कह गयी थी. क्लास में ही हमने बच्चों के बीच में केक कटा और खूब मस्ती की. फिर अतुल ने मुझे कॉपी और बुक्स दी, अपने हाथों से बांटने को. अतुल मुझसे इतना प्रेम करता है, मैं कभी जान ही न सकी थी. ये पल मेरे लिए कितने अनमोल बन गए थे. प्रेम का एहसास...पहली बार कॉलेज में पहला दिन...बारिश में छत पर हल्ला मचाना...भाई के साथ कच्चे अमरुद तोड़ने की जिद और जाने क्या क्या...जैसे इन पलों को बयां कर पाना मुश्किल है वैसे ही आज के पल मेरे लिए अनमोल बन गए थे. मैंने आते हुए तय कर लिया था, घर पर अतुल के बारे में बता दूंगी...फिर चाहे जो कुछ हो. अगले महीने अतुल को उसके जन्मदिन पर शानदार पार्टी दूंगी... शाम को जब पिताजी घर लौटे तो उनके हाथ में मिठाई थी और बेहद खुश नजर आ रहे थे...मैंने सोचा यही सही मौका है सब बताने का. इससे पहले में कुछ बताती....

पिताजी

पिताजी

पिताजी ने माँ को बताया, गीतिका का रिश्ता पक्का कर आया हूँ. लड़के वाले ऊँचे खानदान के हैं. गीतू को उन्होंने पसंद कर लिया है. इसी महीने विवाह करना चाहते हैं. मैंने इतना अच्छा रिश्ता हाथ से नहीं जाने दिया और हां कर दी. बस जल्दी से तैयारी शुरू कर दो. पिताजी के एक एक लफ्ज मेरे हृदय को चीरते गए. मानो कोई पत्थर मर रहा हो. इतनी हिम्मत भी नहीं जुटा सकी की अपने प्रेम के बारे में बता सकूँ. एक ही दिन में सुबह खुशिओं से झोली भरी थी, और शाम को जाने किसकी नजर लग गयी. पापा को मैं अच्छी तरह जानती थी, वो रिश्ता पक्का कर आये हैं और जबान दे चुके हैं. अब मेरी लाख कोशिश पर भी रिश्ता तोडेंगे. कही से कोई उम्मीद की किरण भी तो नजर नहीं रही थी. एक बार सोचा अतुल के साथ भाग जाऊ, जाने किस दर से खामोश बैठ गयी. जन्मदिन की वो रात नींद भी तो दुश्मन बन गयी थी मेरी. एक एक पल बैरी हो गया मानो. मोबाइल के एसएमएस पैक भी तो ख़तम हो गया था. अतुल से बात भी नहीं हो पा रही थी. पूरी रात जागते हुए मैं दिन के उन पलों को याद करती रही, जब हम बस्ती में बच्चों के साथ थे. सुबह जब अतुल को बताउंगी तो उस पर क्या गुजरेगी, यही सोचकर भी सहम गयी थी. पर सच तो बताना ही पड़ेगा उसे. कैसे करेंगे, कैसे होगा सब ठीक, यही सोचते सोचते कब आँख लग गयी पता नहीं चला. सुबह सबसे पहले एसएमएस डलवाया और अतुल को अर्जेंट कॉल करने के लिए बोल दिया. मेसेज मिलते ही कॉल गयी. मुझे बिलकुल नहीं सूझ रहा था, कहाँ से बात शुरू करूँ. पहले तो मैं उसे जन्मदिन पार्टी की बधाई देती रही और जाने क्या क्या बोलती रही. मगर वो हर बार किसी अर्जेंट मेसेज की याद दिला देता. आखिर में मैंने हिम्मत जुटाकर उसे सच बता दिया की पापा ने मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. इतना सुनते ही खामोशी छा गयी दोनों तरफ. ना मेरे मुंह से कोई अल्फाज निकला और ना उधर से कोई आवाज आई. करीब दो मिनट बाद अतुल की आवाज आई...चिंता क्यों करती हो शोनू. अपनी माता या पिताजी से बात करके देख लो. अगर तुम कहो तो मैं बात करूँ, या फिर अपने माता-पिता को भेज दू तुम्हारे घर. मैंने घबराते हुए जवाब दिया, ऐसा मत करना अतुल. तुम मेरे पिताजी के गुस्से को नहीं जानते....और मुझमे इतनी हिम्मत नहीं हेई की उनसे कह सकूँ की मैंने खुद अपने लिए किसी को पसंद कर लिया है. मेरे इस जवाब पर अतुल बिलकुल नाराज नहीं हुआ. कैसे हिम्मत से उसने बोल दिया, शोनू, अगर कायनात में सबसे अनमोल कोई है तो सबसे पहले माता-पिता ही हैं. इसके बाद इश्वर, फिर तुम और बाद में मैं. जो तुम्हारा हृदय कहें वाही करो... मैं बिलकुल भी बुरा नहीं मानूगा. हमने प्रेम शायद कभी हासिल करने के लिए तो नहीं किया ना....उसकी इन बातों मुझमे कितनी हिम्मत गयी थी. सोचा था, सारे गम अतीत के पलों के संग बिता दूंगी. ये पल तो खुद ईश्वर भी मुझसे नहीं छीन सकता. इसके बाद फिर मैंने उसे फ़ोन नहीं किया. शायद उसने भी कोशिश नहीं की. मैं इतनी कमजो थी की माता-पिता को कुछ नहीं बता सकी. दर था की कही पिताजी अतुल को कोई चोट पहुंचा दें. अगले ही हफ्ते आनन-फानन में सगाई के साथ ही मेरा विवाह भी कर दिया. सोचा ठा की शादी से पहले उसे एक बार फ़ोन करुँगी, मगर उसका भी मौका नहीं मिला. आज दीपक के साथ शादी को एक माह से ज्यादा हो गया है. अचानक दीपक ने सुबह तारीख पुच ली तो पुराने दिन मनो एकदम आँखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगें. वो पार्क में अतुल के साथ घंटो बेठे रहना, रात-रात तक एसएमएस करना और कॉलेज से बंक मारकर फिल्म देखना.....आज ही तो उसका जन्मदिन है. क्या में इतनी कमजोर हो गयी हूँ की उसे विश भी नहीं कर सकती. नहीं...मैं इतनी कमजोर नहीं हू. मैं उसे फ़ोन पर विश जरुर करुँगी. तो क्या हुआ, जो हम अलग-अलग हो गए. आखिर दोस्ती का रिश्ता तो मैं निभा ही सकती हूँ..क्या पता वो भी मेरे फ़ोन का इंतजार कर रहा हो. कांपते हाथों से मैंने फ़ोन उठाया और नंबर डायल करने लगी. चाहकर भी आखिरी अंक नहीं दबा सकी और हृदय से यही निकल पाया, जन्मदिन मुबारक अतुल.....और फ़ोन वहीँ रख दिया.

4 comments:

जगदीश त्रिपाठी said...

अच्छा किया फोन नहीं किया। मां-बाप के कहे के अनुसार शादी कर ली.। यह भी ठीक किया। ब्वायफ्रेंड जितना प्यार करने वाले और भी मिल सकते हैं। पति भी दूसरा मिल सकता है। लेकिन पिता नहीं। मां नहीं।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

अच्छा लिखा है | वैसे आज-कल के ज्यादातर प्रेम विवाह आगे चल कर टूट ही जाते हैं | पता नहीं शादी के बाद दोनों का प्रेम कहाँ चला जाता है ?

सुधीर राघव said...

aachcha likh rahe ho.

Arun said...

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