देश में होने वाले चुनाव इस समय सबसे बड़ा टॉकिंग इश्यू बने हुए हैं। बड़े से बड़े विश्लेषक (गलतफहमियां हो जाती हैं, इंसान ही तो हैं) से लेकर आम आदमी के कमेंट्स से फेसबुक, ट्विटर जैसी साइट्स और इधर-उधर होने वाली चौपालें भरी रहती हैं।
नेताओं से इतर, मुझे एक बात सुनने को मिली, जो यहां शेयर कर रहा हूं। है पॉलिटिक्स से जुड़ी ही। मैं और मेरी क्वीन (शिल्पा) कुछ दिनों पहली देखी फिल्मों पर चर्चा कर रहे थे। हर फिल्म में एक कॉमन बात थी, पहले की फिल्मों में हीरो ही हीरो छाए रहते थे, लड़कियों की अहमियत ही नहीं होती थी। पर अब जैसे लगता है ये साहसी अभिनेत्रियां इन्हें पीछे छोड़कर अपना मुकाम बना रही हैं। दीपिका को देखिए- ये जवानी, दीवानी में रणबीर को बैकफुट पर कर दिया तो राम-लीला में रणवीर कहां टिकते हैं। हाईवे में मंझे हुए हुड्डा के सामने आलिया भट्ट शेरनी की तरह छा गई...। परिणीति की हंसी तो फंसी देख लीजिए- हर तरफ वही है। आशिकी फेम श्रद्धा कपूर की आंखों को देखकर लगता है कि कहीं से वे नई अदाकारा है। हर भाव उनकी आंखों से झलकता है। अगर वो न भी बोलतीं तो भी चल जाता।
तनु वेड्स मनु वाली कंगना अब क्वीन में क्वीन साबित हो रही हैं।
समझदार समीक्षकों, सिर्फ मनोरंजन ढूंढने वाले दर्शकों की परिभाषा पर भले ही इन अभिनेत्रियों की कुछ फिल्में खरी न उतरें, पर कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है। आप याद कीजिए, कब आप बुढ़ाते अभिनेताओं को ध्यान में रखकर फिल्म देखने गए थे और कब आप इन साहसी अभिनेत्रियों को देखने गए थे। शायद आंकलन आसान हो जाए या फिल्म देखने के बाद सोचा हो।
खैर, अब जरा मुख्य बात की तरफ लौटूं। बातों के बीच बात निकली- क्यों न इन नेताओं की जगह फिल्म की लड़कियों को मौका दें देश चलाने का। बोल्ड हैं, ब्यूटीफुल और समझदार है। लड़कों के छक्के छुड़ा रही है। बात-बात पर झगडऩे, कुर्सियां उठाने वाले नेताओं से तो अच्छा ही देश चलाएंगी...।
सुन/पढ़ रही हो लड़कियों...चीयर्स
2 comments:
मौका देने में कोई हर्ज नहीं है। अगर संसद में आधी सीटों पर ये काबिज हो जाएंगी तो हम भी सांसद बनने की कोशिश शुरू कर देंगे।
मौका देने में कोई हर्ज नहीं है। अगर संसद में आधी सीटों पर ये काबिज हो जाएंगी तो हम भी सांसद बनने की कोशिश शुरू कर देंगे।
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