Wednesday, October 6, 2010

एक मौत और छुट्टी...।

शादीशुदा परिवार पर हास्यविनोद से भरे लेख को कंपलीट कर मैं ब्लॉग पर डालने की तैयारी कर रहा था। तभी मेरी सिस्टर ने स्कूटी का हॉर्न दिया। उसके जल्दी आने पर चौक गया और गेट खोलकर कॉलेज से जल्दी आने का कारण पूछा।
कॉलेज के टीचर के युवा बेटे की अक्समात मौत होने पर शोकस्वरूप छुट्टी कर दी गई।
फिर तो सारे टीचर संस्कार में गए होंगे। तू क्यों नहीं गई। कितने बजे होगी अंत्येष्टि। चल फिर अब साथ ही चल पड़ेंगे, मैंने उससे पूछा।
कोई फायदा नहीं है। वहां कोई नहीं जा रहा। कॉलेज में छुट्टी हो गई, तो सारे घर या इधर-उधर चले गए। फिर मैं वहां क्या करती। जब हम रजिस्टर पर साइन करने जा रहे थे, उसी समय सारे टीचर्स बाहर खड़े थे।
एक टीचर कह रहे थे, रात को ठीक से सो नहीं सका। फिल्म देखने चले गए थे। चलो अच्छा ही हुआ छुट्टी मिल गई। थकावट दूर हो जाएगी। इतने में दूसरे ने कहा, कॉलेज में स्टूडेंट पढ़ते तो हैं नहीं। फिर हम क्यों सिरदर्द बढ़ाएं। छुट्टी हो ही गई है। चलो इसी बहाने मैकडी पर बर्गर खाने चलते हैं।
कॉलेज में सबको पता था, टीचर के बेटे की मौत हो गई है। पर एक मैडम अपनी सगाई की खुशी में मिठाई का डिब्बा लिए घूम रही थी। साथ ही चहक रही थी, क्योंकि इस छुट्टी से उसे अपने होने वाले जीवनसाथी के साथ घूमने का मौका जो मिल गया था। कुछ ने अवसर का 'लाभ' उठाया और मॉल में फिल्म देखने निकल गए। एक क्लर्क बोला, रजिस्टर पर लिखते-लिखते थक गया हूं। जरा सा आराम नहीं मिलता। ओए, छोटू चाय लेकर आ जरा। चाय पीकर घर चलते हैं।
ये तो किसी की मौत पर सेलिब्रेशन मना रहे हैं।
उसका एक-एक शब्द मुझे अंदर तक झकझोर गया। ये सब मैं यहां इसलिए बता रहा हूं क्योंकि ये किसी अशिक्षित या ऐरे-गैरी जगह की बात नहीं है। शिक्षा के मंदिर में जब किसी की मौत को छुट्टी का नाम देकर जश्न मनाया जाएगा, तब उस समाज की संवेदनाएं कैसी होंगी, ये बताने की जरूरत नहीं है। ...और कुछ लिखने की हिम्मत भी नहीं हो रही अब।
कमलेश्वर जी ने जब 'दिल्ली की एक मौत' कहानी लिखी थी, उस समय तक शायद हृदय के किसी कोने में भावनाएं जीवित थी, मगर आज तो वो भी मर चुकी हैं। क्योंकि आज कोई किसी के आखिरी सफर में भी साथ नहीं देता। क्योंकि एक मौत हमारे लिए छुट्टी जो लेकर आती है।

बड़े कमाल का है ये दौर
दूसरों के आंसूओं में
ढूंढते हैं अपनी खुशियां
दुख देकर चैन तो पहले भी हमने लूटा
अब झूठी बूंदे तक नहीं बहती
ये तरक्की, कोरापन है या कुछ और

बड़े कमाल का है ये दौर।

4 comments:

Asha Joglekar said...

संवेदनाशून्य और क्या ।

Udan Tashtari said...

क्या कहें इस दौर को.

rashmi ravija said...

ग़मगीन कर गयी ये पोस्ट...पर सच तो यही है...आज किसी के मौत की खबर भी किसी को उदास नहीं करती बल्कि...छुट्टी का बहाना बन जाती है

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

दुनिया है भाई साहब!
आशीष
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प्रायश्चित